जीव मुक्ति
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह ये पाँच यम हैं जिनसे मनुष्य समाज में रहने की योग्यता प्राप्त करता तथा शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान ये पाँच नियम हैं। जिनके परायण से व्यक्तिगत श्रेष्ठता प्राप्त होती है। सुख और दुःख जब दोनों सापेक्ष हैं तो दोनों का अस्तित्व स्वयं सिद्ध है। अतः संसार को दुःखरूप मानना यथार्थ नहीं। किन्तु जहाँ तक महर्षि दयानन्द का प्रश्न है, वे इससे भी सन्तोष नहीं करते। उनकी तो यह मान्यता है कि संसार में दुःख की अपेक्षा सुख कहीं अधिक है। वे लिखते हैं - जो सृष्टि के सुख-दुःख की तुलना की जाय तो सुख कई गुना अधिक होता है और बहुत से पवित्र आत्मा जीव मुक्ति के साधन कर मोक्ष के आनन्द को भी प्राप्त होते हैं।
महर्षि प्रथम महामानव हैं कि जिन्होंने सुख-दुःख संबन्धी वह नवीन उद्भावना संसार के सम्मुख उपस्थित की है और उनकी यह उद्भावना कोरी कल्पना भी नहीं, अपितु पूर्णतः सत्य और यथार्थ है।
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आत्मज्ञान का पर्व शिवरात्रि शिवरात्रि आत्मज्ञान का पर्व है। सत्य को जानने और खोजने का पर्व है। शिवरात्रि सच्चे शिव के साथ जुड़ने का सन्देश देती है। जड़ पूजा से चेतन पूजा की ओर चलो। बाहर की दुनियां से अन्दर की दुनियां में आओ। उठो! जागो! अपने जीवन तथा जगत को संभालो। जीवन बड़ी तेजी से व्यर्थ की बातों, विवादों, उलझनों और भोगों...